जीवन का झरना : हिन्दी कविता

                    जीवन का झरना
           
                       
                                 - आर.सी.प्रसाद सिंह   
यह जीवन क्या है ? निर्झर है ,
मस्ती ही इसका पानी है।
सुख दु:ख के दोनो तीरों से ,
चल रहा राहमनमानी है।
कब फूटा गिरि के अन्तर में ,
किस अंचल से उतरा नीचे?
किस घाटी से बहकर आया,
समतल में अपनें को खींचे।
निर्झर में गति है ,यौवन है
वह आगे बढ़ता जाता है।
धुन सिर्फ एक है,चलने की
अपनी मस्ती में गाता है।
निर्झर कहता है बढ़े चलो
तुम पीछे मत देखो मुड़कर।
यौवन कहता है बढ़े चलो,
सोचो मत क्या होगा चलकर।
चलना है केवल चलना है ,
जीवन चलता ही रहता है।
मर जाना है रुक जाना ही,
निर्झर यह झरकर कहता है।

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